लोहागढ़ दुर्ग

भरतपुर को राजस्थान का प्रवेश द्वार कहा जाता है लोहागढ यहाँ का प्रसिद्ध किला हैं जो कि यथा नाम तथा गुण कि उक्ति को चरितार्थ करता है।
मुगलो व अंग्रेजो के विरुद्ध यह जाटो के ओज व प्राक्रम का साक्षी रहा हैं। भरतपुर के राजा सुरजमल द्वारा निर्मित यह किला तरासे हुए पत्थरों से बना है इसकी बाहरी प्राचीर चौड़ी व मिट्टी कि बनी है।Taragarh Fort Hindi
तोप के गोलों कि मार से यह बेअसर रहा, गोले मिट्टी में धंसकर रह जाते थे सन् 1733 मे सूरजमल ने इसका निर्माण करवाना प्रारंभ किया, पहले यहाँ पर खेमकरण जाट कि छोटी सी कुटीया थी।
महाराजा ने अन्य दुर्गो कि खामियों से सबक लेकर इसे समय कि आवश्यकता के अनुरूप बनवाया। इसे तैयार होने में 8 वर्ष लगे जो कि सन् 1741-42 में बनकर तैयार हुआ।इसका विस्तार सूरजमल के प्रपौत्र महाराजा जसवंतसिंह( 1853-93) के  समय तक चलता रहा।
पूर्ण होने पर इसे हिन्दूस्तान का अजय किला कहा गया।इस आयताकार दुर्ग का फैलाव 6•4वर्ग किमी छेत्र में है इसकी दो विशाल प्राचीर ईट व पत्थरो से बनी है इन प्राचीरो का बाहरी हिस्सा मिट्टी का बना है।
किले के चारों ओर गहरी खाई बनी हुई है इस खाई में पानी सुजान गंगा नहर द्वारा मोती झील से लाया जाता था। दुर्ग कि आठ विशाल बुर्जो 40 अर्द चन्द्राकार बुर्ज तथा दो  विशाल दरवाजे है।
इनमें से अष्ठधातु से बने दरवाजे महाराजा जवाहरसिह 1765 मे दिल्ली के लालकिले से उतारकर लाय थे। जवाहर बुर्ज दिल्ली विजय के स्मारक के रूप में तथा फतेहबुर्ज 1806 मे अंग्रेजो पर फतह के उपलक्ष्य में बनाई गयी।
अन्य में सनसनी बुर्ज, भैसावली, गौकुला, कालिका, बागरवाली और नवलसिह बुर्ज स्थापत्य की दृष्टि से इस किले को अनुपम बनाती है। दुर्ग के बाहर वाली खाई करीब न 250 फिट चौड़ी और 20 फिट गहरी है।
यहाँ पर बड़े बड़े दरवाजे थे जिनमें प्रवेश एक पक्की सड़क के माध्यम से होता था मुख्य किले कि दिवारे 100 फिट उची और चौड़ाई 30 फिट थी लोहागढ के दुर्ग ने मुगलो अंग्रेजो और मराठो के कयी हमले झेले।
इसमें 1805ई में अंग्रेजो का हमला उल्लेखनीय है तब जनवरी से अप्रैल तक पाँच आक्रमण हुए किन्तु हर बार अंग्रेज नाकाम रहे। रणजीतसिह कि मृत्यु के बाद 1826ई में राजघराने के आतरीक झगड़ो के चलते अंग्रेजो ने इसे जीत लिया।

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